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भारत में खाद्य तेलों का वैज्ञानिक विश्लेषण: कौन सा है स्वास्थ्य के लिए बेहतर?

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भारत में खाद्य तेलों की विविधता

Edible Oils in India

Edible Oils in India

भारत में खाद्य तेल: भारतीय व्यंजनों में उपयोग होने वाले तेलों की विविधता सांस्कृतिक, भौगोलिक और स्वास्थ्य संबंधी प्राथमिकताओं को दर्शाती है। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तेलों का उपयोग होता है: उत्तर भारत में सरसों का तेल, दक्षिण में नारियल और तिल का तेल, पश्चिम में मूँगफली का तेल और शहरी क्षेत्रों में रिफाइंड तेलों का प्रचलन बढ़ रहा है। लेकिन इन तेलों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? कौन से तेल फायदेमंद हैं और कौन से हानिकारक? यह लेख इन सवालों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


तेलों की रासायनिक संरचना और स्वास्थ्य पर प्रभाव तेलों की रासायनिक संरचना

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खाद्य तेल मुख्य रूप से वसा अम्लों (Fatty Acids) से बने होते हैं, जो तीन प्रकार के होते हैं—संतृप्त वसा (Saturated Fatty Acids - SFA), असंतृप्त वसा (Unsaturated Fatty Acids) और ट्रांस फैट (Trans Fatty Acids)।

• मोनो-अनसैचुरेटेड फैट (MUFA)

• पॉली-अनसैचुरेटेड फैट (PUFA)

ट्रांस फैट स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं और हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि, और मोटापे का कारण बन सकते हैं। मानव शरीर को सीमित मात्रा में वसा की आवश्यकता होती है। एक सामान्य वयस्क को प्रतिदिन 50-70 ग्राम वसा की आवश्यकता होती है, जो आहार का 20-30% ऊर्जा प्रदान करता है। यह मात्रा व्यक्ति की गतिविधि स्तर और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है.


भारत में प्रमुख खाद्य तेल और उनके लाभ-हानि भारत में प्रमुख खाद्य तेल

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सरसों का तेल (Mustard Oil)

• लाभ: इसमें MUFA और PUFA की उच्च मात्रा होती है, जो हृदय के लिए फायदेमंद है। इसमें एलाइल आइसोथायोसायनेट (allyl isothiocyanate) होता है, जो एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुणों से भरपूर है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि यह मोटापे और हृदय रोग के जोखिम को कम कर सकता है।

• हानि: इसमें इर्यूसिक एसिड (erucic acid) की अधिकता हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है।

घी (Ghee)

• लाभ: आयुर्वेद में इसे पाचन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया है। यह विटामिन A, D, E और K में समृद्ध है। सीमित मात्रा में सेवन से ऊर्जा और स्नेहपोषण मिलता है।

• हानि: संतृप्त वसा की अधिकता से कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है।

मूँगफली का तेल (Groundnut Oil)

• लाभ: MUFA में उच्च, हृदय के लिए अनुकूल। इसका स्मोक पॉइंट अधिक होने के कारण तलने के लिए उपयुक्त है।

• हानि: एलर्जी की समस्या वाले लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। ओमेगा-6 फैटी एसिड की अधिकता सूजन का कारण बन सकती है।

सूरजमुखी तेल (Sunflower Oil)

• लाभ: विटामिन E में समृद्ध, एंटीऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर।

• हानि: अत्यधिक PUFA होने से ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन बढ़ सकती है। बार-बार गर्म करने पर विषैले यौगिक बन सकते हैं।

नारियल का तेल (Coconut Oil)

• लाभ: लॉरिक एसिड (Lauric acid) से भरपूर, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। इसमें एंटी-वायरल और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं।

• हानि: संतृप्त वसा की अधिकता से हृदय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव संभव है।

तिल का तेल (Sesame Oil)

• लाभ: एंटीऑक्सिडेंट्स और विटामिन E से समृद्ध। यह ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में सहायक है।

• हानि: अधिक मात्रा में सेवन से वसा संतुलन बिगड़ सकता है।

जैतून का तेल (Olive Oil)

• लाभ: MUFA में समृद्ध, हृदय के लिए सर्वोत्तम विकल्पों में से एक। इसमें सूजनरोधी गुण और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं।

• हानि: उच्च तापमान पर प्रयोग सीमित करें, यह तलने के लिए उपयुक्त नहीं है। महंगा होने के कारण हर रोज़ उपयोग सभी के लिए संभव नहीं।

रिफाइंड तेल (Refined Vegetable Oils)

• लाभ: उपयोग में सुविधाजनक, स्वाद में हल्का।

• हानि: रासायनिक प्रसंस्करण से पोषक तत्व कम हो सकते हैं। ट्रांस फैट और ऑक्सिडेटिव यौगिक बनने की संभावना।


भारत में बेहतर खाद्य तेल

भारत में निम्नलिखित तेल क्षेत्रीय आहार परंपरा और स्वास्थ्य अध्ययन के अनुसार बेहतर माने गए हैं:

• सरसों का तेल – पूर्वी और उत्तरी भारत

• तिल का तेल – दक्षिण भारत और आयुर्वेदिक भोजन में

• नारियल का तेल – केरल और तटीय क्षेत्रों में

• घी (सीमित मात्रा में) – पारंपरिक भारतीय व्यंजनों में

• जैतून का तेल – सलाद या हल्के ताप पर पकाने के लिए

• चावल की भूसी का तेल – आधुनिक और उच्च तापमान उपयोग के लिए


तेल सेवन के लिए वैज्ञानिक सुझाव तेल सेवन के लिए सुझाव

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प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कुल वसा की मात्रा 50-70 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। भोजन में तेल का योगदान कुल कैलोरी का 20-30 फ़ीसदी तक सीमित रखें। एक ही प्रकार के तेल का लगातार उपयोग न करें; तेलों का चक्रीय उपयोग करें। तेल का बार-बार पुनःउपयोग न करें, इससे विषैले यौगिक बन सकते हैं। कोल्ड-प्रेस्ड और कच्चे (unrefined) तेल स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी हो सकते हैं।

तेल न तो पूर्णतः हानिकारक है, न ही पूर्णतः लाभकारी। इनका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि कौन-सा तेल, कितनी मात्रा में, और किस प्रकार उपयोग किया जा रहा है। भारत में पारंपरिक तेलों (सरसों, तिल, घी) का वैज्ञानिक संतुलन के साथ सेवन आज भी स्वास्थ्यप्रद माना जा सकता है, बशर्ते हम उसकी गुणवत्ता, शुद्धता और सीमित मात्रा का ध्यान रखें।


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